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मेडिकल फर्जीवाड़ा मामले में, सीएमएचओ डॉ बी एल राज की जांच पर उठ रही उंगलियां।

 मेडिकल फर्जीवाड़ा मामले में, सीएमएचओ  डॉ बी एल राज की जांच पर उठ रही उंगलियां।



कवर्धा :- सीएमएचओ डॉ बी एल राज ने मेडिकल फर्जीवाड़ा प्रकरण का प्रारंभिक जांच किया है। 

डॉ बी एल राज ने अपने जांच में, प्रमाण पत्र जारी करने वाले सिविल सर्जन डॉ सुरेश कुमार तिवारी और जिन आरक्षकों के साथ फर्जीवाड़ा हुआ उनका बयान ही नही लिया। डॉ बी एल राज के जांच प्रतिवेदन अनुसार डॉ स्वप्निल तिवारी ने बयान दिया है कि जब आवेदक आवेदन लेकर आये तब उनके प्रमाण पत्र में बी पी/शुगर का जांच किया गया था। आवेदन में सबसे पहले मैंने हस्ताक्षर किया है। डॉ प्रभांत चन्द्र प्रभाकर ने बयान दिया है कि नव आरक्षक डेविड लहरे और खेमराज का बी पी पल्स चेस्ट का जांच किया  और हस्ताक्षर किया है। डॉ स्वप्निल तिवारी और डॉ प्रभांत चंद्र प्रभाकर का बयान आपस मे एक दूसरे का विरोध करते है। बता दें कि  जिला अस्पताल कवर्धा में मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर नमिता वाल्टर उक्त आरक्षकों को उनके ओ पी डी पर्ची में ई सी जी एक्स रे व अन्य टेस्ट कराने के लिए लिखी थी। जांच अधिकारी डॉ बी एल राज एक डॉक्टर होने के नाते मेडिकल बोर्ड में मेडिसिन विशेषज्ञ की भूमिका बहुत ही अच्छे से जानते है। आरक्षकों के सर्टिफिकेट में मेडिसिन विशेषज्ञ का हस्ताक्षर ही नहीं है। 

डॉ बी एल  राज ने आधे अधूरे जांच करके अपना जांच  प्रतिवेदन दे दिया। अपने प्रतिवेदन में शिकायतकर्ता नेत्र सहायक अधिकारी श्री मनीष जॉय एवं लिपिक श्री दीपक सिंह ठाकुर को दोषी ठहराया दिया। डॉ बी एल राज ने झुठी जांच रिपोर्ट लिखकर फर्जी हस्ताक्षर करने वाले आरोपी तक पहुचे बिना ही जांच समाप्त कर अपना प्रतिवेदन दिया है जिसके   कारण जांच में सवाल खड़े होना लाजिमी है आखिर क्यों फर्जी हस्ताक्षर करने वाले तक पहुंचने के पहले जांच समाप्त किया गया ? सिविल सर्जन डॉ सुरेश कुमार तिवारी और बर्खास्त आरक्षकों का बयान क्यों नही लिया गया? डॉ प्रभाकर और डॉ स्वप्निल तिवारी का परस्पर विरोधी बयानबाजी के बाद भी क्यों कोई  निष्कर्ष  तक नहीं पहुचे ? 


विभागीय सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक मेडिकल फर्जीवाड़ा को अंजाम देने वाले आरोपियों पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कद्दावर मंत्री के नुमाइंदों का  वरदहस्त रहा है इसलिए दिशाहीन दूषित जांच करके मामले को रफादफा करने के लिए जांच जांच का खेल खेला गया। गौर से देखे तो ऐसा लगता है मानो इस खेल में बहुत ही शातिराना अंदाज में मामले के दोषी डॉक्टरों को बचाने का भरसक प्रयास किया गया है। इस जांच में एक डॉक्टर का दूसरे डॉक्टर पर अटूट प्रेम छनकर बाहर निकलता है। 


बहरहाल पूरे मामले में निष्पक्ष जांच की दरकार है। ताकि सत्य निखरकर सामने आए और वास्तविक दोषियों को सजा मिले।

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